गीतकार : शकील बदायुनी | राग : |
चित्रपट : बैजू बावरा (१९५२) | संगीतकार : नौशाद |
भाव : विमूढ़ | गायन : मोहम्मद रफ़ी, लता मङ्केश्कर |
तू गंगा की मौज, मैं
जमुना का धारा
तू गंगा की मौज, मैं
जमुना का धारा
हो रहेगा मिलन ये हमारा,
होऽ हमारा तुम्हारा रहेगा मिलन
ये हमारा तुम्हारा ॥मुखड़ा॥
अगर तू है सागर तो
मझदार मैं हूँ, मझदार मैं हूँ
तेरे दिल की कश्ती का
पतवार मैं हूँ, पतवार मैं हूँ
चलेगी अकेले ना तुमसे ये नैया,
ना तुमसे ये नैया,
मिलेगी ना मंजिल तुम्हें बिन खेवैया
तुम्हें बिन खेवैया
चले आओ जी, चले आओ जी
चले आओ मौजों का लेकर सहारा
हो रहेगा मिलन ये हमारा तुम्हारा ॥१॥
भला कैसे टूटेंगे बंधन ये दिल के
बंधन ये दिल के
बिछड़ती नहीं मौज से मौज मिलके
दो मौज मिलके
डूबोगे भँवर में तो डूबने ना देंगे
डूबने ना देंगे
डूबो देंगे नैया तुम्हें ढ़ूँढ़ लेंगे
तुम्हें ढ़ूँढ़ लेंगे
बनायेंगे हम बनायेंगे हम
बनायेंगे तूफाँ को एक दिन किनारा
हो रहेगा मिलन ये हमारा तुम्हारा ॥२॥
तू गंगा की मौज, मैं
जमुना का धारा
तू गंगा की मौज, मैं
जमुना का धारा
हो रहेगा मिलन ये हमारा,
होऽ हमारा तुम्हारा रहेगा मिलन
ये हमारा तुम्हारा
तू गंगा की मौज, मैं
जमुना का धारा
हो रहेगा मिलन ये हमारा तुम्हारा।
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